हर साल बनी साद की औरतें दूध पीने वाले बच्चों की तलाश में मक्का आया करती थीं। हजरत हलीमा फरमाती हैं कि मैं और बनी साद की औरतें दूध पीने वाले बच्चों की तलाश में मक्का आए। मेरे साथ मेरे शौहर और एक मेरा दूध पीता बच्चा था। सवारी के लिए एक कमजोर और दुबली गधी और एक ऊंटनी थी, जिसका यह हाल था कि दूध का एक कतरा भी उसके नहीं निकलता था। इसलिए हम भूख की वजह से रात भर सोते नहीं थे। बच्चे का यह हाल था कि तमाम रात भूख की वजह से रोता और बिलबिलाता था। मेरे पिस्तानों में इतना दूध न था कि जिससे बच्चे का पेट भर सके। कोई औरत ऐसी ना रही कि जिस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पेश न किए गए हों। मगर जब यह मालूम होता कि आप यतीम हैं, तो फौरन इनकार कर देतीं, कि जिसके बाप ही नहीं है, उससे खिदमत का हक़ मिलने की क्या तवक़्क़ो की जा सकती है, मगर यह किसी को मालूम न था, कि यही वह मुबारक बच्चा है कि जिसके हाथों में क़ैसर व किसरा के खजाने की चाबियां आने वाली हैं। दुनिया में अगरचे इसका कोई वाली, मुरब्बी और खिदमत का हक़ देने वाला नहीं है, मगर वह रब्बुल आलमीन जिसके हाथ में तमाम जमीन और आसमान के बेशुमार खजाने हैं वह इसका वाली है, और इसकी परवरिश और तरबियत करने वालों को वहम व गुमान से ज्यादा खिदमत का हक़ देने वाला है।
सब औरतों ने दूध पीने वाले बच्चे ले लिए। सिर्फ हलीमा खाली रह गईं। जब रवानगी का वक्त आया तो हलीमा को खाली हाथ जाना अच्छा नहीं लगा। अचानक ग़ैब से हलीमा के दिल में उस यतीम के लेने का निहायत ही मज़बूत इरादा पैदा हो गया। हलीमा ने अपने शौहर से जाकर कहा, “खुदा की कसम मैं जरूर उस यतीम के पास जाऊंगी, और जरूर उसको लेकर आऊंगी”। शौहर ने कहा, “अगर तू ऐसा करे तो कोई हर्ज नहीं, उम्मीद है कि हक जल्ले शानहू उसको हमारे लिए खैर व बरकत का सबक बना दे”।
एक हदीसे क़ुदसी में अल्लाह जल्ले शानहू का फरमान है, जिसका मफ़हूम है कि बंदा मेरे साथ जैसा गुमान करता है मैं वैसा ही उसके साथ मामला करता हूं।
बरकतों की इसी उम्मीद पर हलीमा आप को ले आईं। अल्लाह ने इसी उम्मीद के मुताबिक उन पर बरकतों का दरवाजा खोल दिया। बनी साद की औरतों ने मख़लूक़ से उम्मीद बांधी और हलीमा ने ख़ालिक़ से उम्मीद बांधी। हलीमा कहतीं हैं कि इस बच्चे को गोद में लेना था कि पिस्तान जो बिल्कुल खुश्क हो गए थे वह दूध से भर गए। इतना दूध हुआ कि आपका भी ख़ूब पेट भरा और आपके रजअई भाई का भी ख़ूब पेट भरा। ऊंटनी का दूध दुहने के लिए उठे तो देखते क्या है कि थन दूध से भरे हुए हैं। मैंने और मेरे शौहर ने खूब पेट भरकर दूध पिया। रात बहुत ही आराम से गुजरी। सुबह हुई तो शौहर ने हलीमा से कहा, कि हलीमा खूब समझ ले कि खुदा की कसम तूने बहुत ही मुबारक बच्चा लिया है। इस पर हलीमा ने कहा “खुदा की कसम मैं यकीन से कहती हूं कि अलबत्ता मैं अल्लाह से यही उम्मीद रखती हूं”।
अब काफिले की रवानगी का वक्त आया, और सब सवार होकर चल पड़े। हलीमा भी उस बच्चे को लेकर सवार हुईं। हलीमा की वह दुबली पतली सवारी जिसको पहले चाबुक मार मार कर हंकाया जाता था, वह अब तेज रफ्तार है और किसी तरह रोके नहीं रुकती। उस वक्त तो वह एक नबी की सवारी बनी हुई थी। साथ वाली औरतों ने पूछा कि ए हलीमा यह वही सवारी है? औरतों ने कहा कि वल्लाह इस वक्त तो इसकी शान ही जुदा है।
उस वक्त बनी साद की सर जमीन से ज्यादा किसी जगह क़हत न था। मेरी बकरियां जब शाम को चरागाह से वापस आती तो दूध से भरी हुई होती, और दूसरों की बकरियां बिल्कुल भूखी आतीं। थनों में बिल्कुल दूध ना होता। यह देखकर लोगों ने अपने चरवाहों से कहा कि तुम भी उसी जगह चराया करो जहां हलीमा की बकरियां चरती हैं। चुनाचे ऐसे ही किया गया मगर फिर भी यही हुआ कि शाम को हलीमा की बकरियां पेट भरी हुई दूध से लबरेज़ आयीं और दूसरी बकरियां भूखी वापस आयीं। थनों में बिल्कुल दूध न था। हलीमा कहती हैं, “अल्लाह तआला हमको इसी तरह बरकतें दिखाता रहा, और हम अल्लाह की तरफ से इसी तरह खैरो बरकत का मुशाहदा करते रहे। इसी तरह जब 2 साल पूरे हो गए तो मैंने आपका दूध छुड़वा दिया।
जब 2 साल पूरे हो गए तो हलीमा आपको लेकर मक्का आई ताकि हजरत आमना की अमानत उनके हवाले कर सकें। मगर आपके वजूद की वजह से अल्लाह तआला की तरफ से जो बरकतें उतर रही थीं, इस वजह से हलीमा ने हजरत आमना से दरख्वास्त की कि इस बच्चे को और चंद रोज़ मेरे ही पास छोड़ दें। उन दिनों मक्का में वबा भी फैली हुई थी। इधर हलीमा का ज्यादा कोशिश करना, इसलिए हजरत आमना ने हलीमा की दरखास्त मंजूर की और आपको अपने साथ ले जाने की इजाजत दे दी। हलीमा आपको लेकर बनी साद वापस आ गईं। चंद महीने गुजरने के बाद आप भी अपने रजअई भाइयों के साथ जंगल में बकरियां चराने जाने लगे।