दोस्तों, दीनी बातों का मुजाकरा करने के लिए मैंने ये ब्लॉग शुरू किया है। अल्लाह का शुक्र है कि उसने मुझे आपसे रूबरू होने का मौका फ़राहम किया। आजकल के माहौल में बेदीनी ने अपने पैर पसार रखे हैं। जिधर देखो बेदीनी की आग लगी हुई है।
हम सब का वक्त बहुत ही तेजी से गुजरता जा रहा है। गुजरते वक्त के साथ ही हमारी जिंदगी भी कम होती जा रही है और मौत हमारा इंतजार कर रही है। हम गफलत और धोखे में पड़े हुए हैं। और हो भी क्यों ना जबकि अल्लाह रब्बुल इज्जत ने फरमा दिया है की दुनिया धोखे का घर है। अल्लाह रब्बुल इज्जत ने इरशाद फरमाया “वमल हयातुददुनिया इल्ला मताउल गुरुर”। यानी दुनिया की जिंदगी धोखे का सामान है।
मगर जो कोई इस धोखे के घर से चौकन्ना रहा और धोखे से बचता रहा वो अल्लाह की फरमाबरदारी पर खड़ा रहा और नाफरमानी से अपने आप को बचाता रहा। वही दुनिया और आखिरत में कामयाब है।
अल्लाह के प्यारे हबीब सरकारे दो आलम इमाम उल अंबिया हम सबके प्यारे नबी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि मैं तुम्हें लावारिस छोड़कर नहीं जा रहा हूं बल्कि तुम्हें दो चीजें देकर जा रहा हूं, एक अल्लाह का कलाम यानी कुराने करीम और दूसरा अपना कलाम यानी हदीसे मुबारका। जो कोई भी इन दोनों चीजों को मजबूती से थामे रखेगा यानी इन पर अमल करता रहेगा वो गुमराह नहीं होगा।
इन दोनों चीजों पर अमल करने के लिए ,गफलत दूर करने के लिए, और ईमान को ताजा करने के लिए दीन और इमान यकीन के मुज़ाकरे हैं। सहाबा किराम रज़ियल्लाहु तआला अलैहिम अजमइन की आदतें शरीफ़ा थी की वो अपने ईमान और यकीन को ताजा करने के लिए इमान यकीन के मुज़ाकरे किया करते थे। हजरत अब्दुल्ला बिन रवाहा रज़ि०, हजरत अब्दुल्ला बिन जहश रज़ि०, और दीगर सहाबा किराम रज़ी अल्लाहु तआला अलैहिम अजमईन फरमाया करते थे की आओ थोड़ी देर ईमान ले आएं।
हजरात सहाबा किराम रज़ीअल्लाहु तआला अलैहिम अजमईन की इन आदतों पर अमल करने के लिए हम इस मुज़ाकरे को आगे बढ़ाते हैं।
मुज़ाकरे को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले मैं हुज़ूरे पाक हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जिक्र करना चाहूंगा कि जब अल्लाह रब्बुल इज्जत ने हुजूर ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दुनिया में भेजा।
सरवरे आलम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम असहाबे फील के वाक़ये के 50 या 55 दिन के बाद 8 रबिल अव्वल पीर के दिन अप्रैल के महीने में 570 ईस्वी में सुबह सादिक़ के वक्त हज़रत अबू तालिब के मकान में पैदा हुए। हालाँकि मशहूर कोल तो यह है कि हुज़ूर पुरनूर स.अ.व. 12 रबिल अव्वल को पैदा हुए, लेकिन ज़्यादातर मुहद्दिसीन और मुअर्रिखीन का क़ौल ये है कि हुज़ूर स.अ.व. 8 रबिलअव्वल को पैदा हुए। हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास और जुबेर बिन मुतअम रज़ि० से भी यही मंक़ूल है।
हजरत उस्मान बिन अबिल आस रज़ि० की वालिदा फातिमा बिन्ते अब्दुल्लाह फरमाती हैं कि मैं आन हज़रत स.अ.व. की विलादत के वक़्त आमिना के पास मौजूद थी तो उस वक्त यह देखा कि तमाम घर नूर से भर गया, और देखा कि आसमान के सितारे झुके आते हैं। यहां तक कि मुझे ये गुमान हुआ कि ये सितारे मुझ पर आ गिरेंगे।
हज़रत अरबाज बिन सारिया रज़ि० से मरवी है कि रसूलुल्लाह स.अ.व. की वालिदा ने विलादत के वक़्त एक नूर देखा, जिस से मुल्के शाम के महल रोशन हो गए।
यह रिवायत मसनद अहमद और मुस्तदरक हाकिम में मज़कूर है।